वानस्पतिक नाम – ग्लाईसीन मैक्स
कुल – लेग्यूमिनेसी
सोयाबीन दलहनी और तिलहनी दोनों वर्गों की फसल है। विश्व में उत्पादन की दृष्टि से देखा जाए तो सोयाबीन की खेती व उत्पादन में प्रथम राष्ट्र संयुक्त राज्य अमेरिका है। और वही विश्व में कुल क्षेत्रफल का लगभग 50 प्रतिशत तथा कुल उत्पादन का लगभग 66 प्रतिशत अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में पाया जाता है। सोयाबीन की फसल में 40% प्रोटीन व 20% तेल पाया जाता है। हमारे भारतवर्ष में सोयाबीन की खेती ज्यादा बड़े क्षेत्रफल पर नहीं होती है। इसलिए सोयाबीन को दूसरे देशों से मंगाया जाता है। सोयाबीन की बढ़ती हुई मांग को देखकर अगले आने वाले कुछ वर्षों में भारत में भी सोयाबीन की खेती की जाएगी। वह भी बड़े क्षेत्रफल पर।
सोयाबीन की खेती के लिए मृदा
सोयाबीन की फसल के लिए दोमट मृदा बहुत अच्छी मानी जाती है। जिसका पीएच मान 6 – 7.5 के बीच होना चाहिए। यदि उस स्थान पर जहां सोयाबीन की बुबाई करना चाहते हैं, वहां पर वर्षा 60 से लेकर 70 सेंटीमीटर तक होती है तो यह सोयाबीन की खेती के लिए अच्छी होती है। बुवाई करने से पहले हमें अपनी मृदा की जांच अच्छे से करा लेनी चाहिए। सोयाबीन की बुवाई का सही समय 15 जून से 15 जुलाई के बीच होता है। इस बीच हमें अपनी सोयाबीन की फसल की बुवाई कर देनी चाहिए।
सोयाबीन की फसल की बुवाई करते समय दूरी 45 * 5 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। और वही गहराई तीन से चार सेंटीमीटर रखनी चाहिए। पौधों के बीच की दूरी सही रखनी चाहिए, नहीं तो जब यह पौधे बड़े होते हैं तो आपस में उनके फल टकराकर गिरने लगते हैं। इससे फसल को नुकसान हो सकता है।

खाद और उर्वरक
सोयाबीन की फसल में खाद और उर्वरक का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है। यदि हमारी फसल में खाद और उर्वरक सही मात्रा में नहीं दिए जाएंगे तो फसल से पैदावार अच्छी नहीं होती है। इसलिए खाद अपनी फसल में अच्छी तरीके से देनी चाहिए। अरहर की फसल में खाद के लिए 20 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन और 70 से 80 किलोग्राम पोटाश और 50 से 60 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से देनी चाहिए।
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अरहर की खेती से उपज
यदि हमारी खेती अच्छे तरीके से होती है, उस पर किसी प्रकार के कोई कीट या रोगो का प्रभाव नहीं पड़ता है। तो हमें अरहर की खेती से 30 से 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से दाना प्राप्त होता है।
सोयाबीन की फसल कुछ महत्वपूर्ण रोग
इस फसल में कली झुलसा रोग बहुत अधिक मात्रा में लगता है। यह एक प्रकार का बीज जनित रोग है। इसमें पौधे की छोटी अवस्था पर ही कलिका भूरे रंग की होकर नीचे की पत्तियों पर जन की तरह पूरे धब्बे बन जाते हैं। आसान भाषा में कहें तो हमें पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे और पाउडर देखने लगता है। इस रोग सें रोग से बचाव के लिए हमें खड़ी फसल पर खड़ी फसल पर डाएथेन जेड – 78 और डाएथेन M 45 की 2 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर हजार लीटर पानी में घोलकर की दर से छिड़काव करना चाहिए। इससे हमारी फसल कीट रहित रहेगी रोग से बची रहेगी और अच्छी उपज प्राप्त होगी।