वानस्पतिक नाम – पाईसम स्पेसीज
कुल – लेग्यूमिनेसी
विश्व में हरी मटर की खेती व उत्पादन की दृष्टि से प्रथम तीन राष्ट्र में चीन भारत और फ्रांस आते हैं। वहीं विश्व में सूखी मटर के उत्पादन की दृष्टि से अगर हम देखें तो प्रथम तीन राष्ट्रों में कनाडा रूस और फ्रांस आते हैं। मटर साधारणतया स्वपरागण फसल है, लेकिन इसमें पर परागण भी होता है। मटर की मुख्यता दो प्रकार की किस्में भारत में पाई जाती हैं। जिनमें से पहली गार्डन पी (टेबल पी) है। इसकी कच्ची फलिया सब्जी बनाने के रूप में इस्तेमाल की जाती हैं। और दूसरी फील्ड पी (देसी मटर) होती है। इसके पके हुए बीज दाल आदि के इस्तेमाल में किए जाते हैं। मटर में 22.5% प्रोटीन पाया जाता है।
मटर की खेती के लिए मृदा –
मटर की फसल करते समय हमें अपनी मृदा की अच्छे से जानकारी होनी चाहिए। हमारी मृदा में किसी प्रकार के कोई पोषक तत्व की कमी तो नहीं है। और यदि है तो उसे दूर करना चाहिए। अन्यथा हमारी फसल से हमें अनुमान लगाई हुई उपज नहीं मिलती है। इसलिए सर्वप्रथम हमें अपनी मिट्टी की जांच करा लेनी चाहिए। इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मृदा सबसे अच्छी मानी जाती है। यदि उस जगह जहां पर आप मटर की बुवाई कर रहे हैं वहां पर 60 – 80 सेंटीमीटर तक बरसात होती है तो यह मटर की खेती के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है। मटर की फसल करते समय वहां का वहां का तापक्रम 55 – 75 डिग्री फॉरेनहाइट तक होना चाहिए।

मटर की कुछ महत्वपूर्ण प्रजातियां –
मटर की फसल उगाते समय हमे अच्छे से पता होना चाहिए की हमे कोनसी किस्म की बुबाई करनी है। और वो किस्म उस जगहे अच्छी उपज देती है।
रचना, हंस, स्वर्ण रेखा, पंत उपहार, अर्का अजीत, अर्पणा, पंत P-5, PG-3, VL-1, HUP – 2
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मटर की बुवाई –
मटर की बुवाई का उचित समय 15 से 30 अक्टूबर के बीच होता है। इस समय हम अपनी मटर की फसल की बुबाई अच्छे से कर सकते है। इसकी खेती के लिए 75 से 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज प्रयोग करते हैं। इसकी खेती में 10 – 20 किलोग्राम नाइट्रोजन और 50 – 70 किलोग्राम पोटाश और 30 – 40 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करते हैं। खेत की जुताई करते समय हमें उसमें गोबर की खाद इत्यादि मिला देनी चाहिए इससे हमारी फसल में कीड़े नहीं लगते हैं। और फसल अनुमानअनुसार उपज देती है।
हमारे खेत में इसकी खेती करने से पहले मृदा में सभी प्रकार के पोषक तत्व उपस्थित होने चाहिए। इससे फसल स्वस्थ रहती है। और अच्छे फल देती है। इसकी खेती में आपको कीड़ों का भी खास ध्यान रखना होता है अगर आप की फसल में किसी प्रकार के कीट लग जाते हैं तो वह दानो को पूरा खराब कर देते हैं। जिससे फसल खराब नष्ट होने का प्रभाव बना रहता है। इसलिए समय-समय पर निम्न प्रकार के रसायन का पौधों पर छिड़काव करते रहना चाहिए। जिससे कि पौधों पर कीटो का प्रभाव ना हो। यह रसायन हमें अपने नजदीकी फसल सहायता केंद्र से पता कर सकते हैं।
फसल से उपज –
मटर की खेती से हमें अगर किसी प्रकार की कीट या पोषक तत्व की कमी ना हो तो 20 – 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से दाना प्राप्त होता है।
मटर के कुछ प्रमुख कीट और रोग –
मटर रोगो निम्न है जिनमें से चूर्णिल आसिता, मृदुल आसिता, म्लानि रस्ट यह कुछ खास कीट है। मटर का चूर्णी फफूदी रोग बहुत खतरनाक होता है। यह रोग ऐरिसायेफी पोलिगोनि नामक होने से लगता है। इस रोग में पत्तियों और फलियों पर सफेद रंग के जैसा पाउडर दिखाई देने लगता है। यह रोग ज्यादातर पछेती किस्मों के ऊपर लगता है। इसकी रोकथाम के लिए हमें 3 किलोग्राम घुलनशील गंधक या केरोसीन 48 EC के 400 – 600 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से इसका छिड़काव फसल पर करना चाहिए। इससे चूर्णी फफूदी रोग का प्रभाव कम होता है। और फसल से हमें अच्छी उपज मिलती है।
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