केला की खेती करने की सही विधि व रोचक तथ्य

वानस्पतिक नाम – Musa Paradisiaca Linn.

कुल – Musaceae

केला में विटामिन A, B, C और D की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। केला की खेती भारत में बहुत बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। यह सब्जियों के रूप में भी बनाया जाता है। और फल के रूप में खाया भी जाता है। यह हमारे यहां पूजा पाठ में भी प्रयोग किया जाता है। इसलिए केला की खेती एक बड़े पैमाने पर हमारे भारतवर्ष में की जाती है।

केला की खेती करने के लिए किस्मे

केला की खेती के लिए भारतवर्ष में मुख्याता तीन प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं। जिनमें पहली खाने वाली प्रजातियां होती हैं, दूसरी सब्जी वाली प्रजातियां होती है, और तीसरी संकर किस्में होती हैं।

खाने वाली किस्में – चंपा, चीनी चम्पा, बरसाई, ड्वार्फ, अल्पान, हरी छाल, मर्तवान, पूबन, अमृतसागर

सब्जी वाली किस्में – राम केला, मंथन, हजारा, कैम्पियर गंज, कोठिआ, कोलंबो, काबुली

संकर किस्में – को- 1 बनाना

केला की खेती | Kela ki kheti
केला की खेती

केला की फसल की बुबाई

भारत में केला की बुवाई जून-जुलाई मैं शुरू कर सकते हैं। यह महीने केला की बुवाई के लिए सबसे अच्छे माने जाते हैं। इसमें पोधो से पोधो की दूरी 2 – 2  मीटर रखते हैं। जो कि बोनी किस्मो के पोधो के लिए पर्याप्त होती है। और लंबी किस्मों के लिए पोधो से पोधो की दूरी 2.5 – 2.5 मीटर रखते हैं।

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केला की खेती में खाद एवं उर्वरक

केला की खेती में खाद एवं उर्वरक की मात्रा बराबर बराबर देनी चाहिए। जिससे कि हमारी फसल अच्छी उपज देख सकें। यदि हमारी मिट्टी में किसी प्रकार की कोई कमी है, तो हमें अपने नजदीकी सहायता केंद्र से चेक करवा लेना चाहिए। अन्यथा इसका प्रभाव हमारी फसलों पर पड़ सकता है। और फल नहीं आते हैं।

केला की फसल में खाद प्रति पेड़ प्रतिवर्ष के हिसाब से देते हैं। प्रथम वर्ष में 250 ग्राम नाइट्रोजन और 100 ग्राम फास्फोरस और 250 ग्राम पोटाश प्रति पौधा प्रतिवर्ष देते हैं। इन उर्वरको की मात्रा को तीन बार देते है पहेली बार रोपते समय और दूसरी बार रोपने के 3 महीने में बाद तथा तीसरी मात्रा रोपने के 5 माह बाद बराबर मात्रा में देते है।

केला की फसल से उपज

बोनी किस्मो की प्रजातियों में पुत्तिया पौध लगाने के 12 से 14 माह के बाद आने लगती है। वही लम्बी किस्मो में ये 14 माह में आने लगती है। केला की फसल से हमें उपज 20 से 25 किलोग्राम फल प्रति पौधा तथा 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से फल प्राप्त होते हैं।

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