वानस्पतिक नाम : साईंसर एराटिनम (Cicer Arietinum )
कुल : लेग्यूमिनेसी (Leguminaceae)
गुणसूत्रों की संख्या : 16
चने का उद्भव स्थान : वैज्ञानिक डी० कंडोल(1884) के अनुसार चने का ज्म्स्थान भारत है | कुछ वैज्ञानिक चने का उद्भव स्थान दक्षिण पूर्व एशिया व दक्षिणी पूर्वी यूरोप मानते हैं |
चने की खेती (Chane ki kheti) | चने के उत्पादन में भारत का प्रथम स्थान है। चना सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। यह पौष्टिकता से भरपूर आहार है, जिसे बेसन, स्प्राउट, सब्जी, चाट, सत्तू के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। चना प्रोटीन से भरपूर दलहन की फसल है। चने की खेती से मिट्टी उपजाऊ होती है।
चने की फसल(Chane ki fasal) मिट्टी को पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन उपलब्ध कराती है। इसकी खेती सेहत के साथ-साथ प्रकृति के लिए भी उतने ही फायदेमंद है। चने की फसल रबी की फसल है। चने की खेती भारत में प्रमुख रूप से मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और बिहार में की जाती है। चने में प्रोटीन 11 कार्बोहाइड्रेट 61.5 आयरन 7.2 कैल्सियम 149 फैट 4.5 प्रतिशत पाया जाता है |
चने की खेती के लिए उन्नत किस्में :
हरा छोला न० 1,गौरव ( एच 75-35 ), राधे, चफा, के० 4, के० 408, के० 850, अतुल (पूसा 413), अजय (पूसा 408), अमर (203), गिरनार,
चने की फसल के लिए जलवायु व तापमान :
चने की खेती (Chane ki kheti) | चना ठन्डे व शुष्क मौसम की फसल है | चने के अंकुरण के लिए उच्च तापमान की जरुरत होती है | इसके पौधे के विकास के लिए अत्यधिक कम व मध्यम वर्षा वाले अथवा 65 से 95 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त हैं |

बुवाई का समय :
मैदानी क्षेत्रों में – 15 अक्टूबर से नवम्बर का प्रथम सप्ताह तक
तराई क्षेत्रों में – 15 नवम्बर से पूरे माह तक
बीज की मात्रा :
देशी चने की किस्मों के लिए – 70-80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
काबुली चने की जातियों के लिए _ 100-125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
देर से बुवाई करने पर – 90-100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
चने की बुवाई पौध से पौध की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर रखने पर अच्छी उपज मिलती है |
खाद व उर्वरक :
चने के पौधे में राईजोबियम नामक बैक्टीरिया होता है जो वायुमंडल से नाइट्रोजन ग्रहण करता है | चने में अंकुरण के बाद जीवाणुओं की ग्रंथियां बनने में 25-30 दिन लग जाते हैं ऐसे में नाइट्रोजन की 15 से 20 किलोग्राम व 40 से 50 फॉस्फोरस तथा 40 से 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर देना चाहिए |
सिचाई व जल निकास प्रबन्धन :
Chane ki kheti | चने की फसल से अधिकतम लाभ लेने के लिए भूमि का जल प्रबन्ध दुरुस्त होना चाहिए | अधिक नमी होने पर पौधे वानस्पतिक वृद्धि तो खूब होती है किन्तु फल – फूल कम लगते हैं | चने की फसल पर बुवाई से 40 से 45 दिन बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए | दूसरी सिंचाई चने में फूल आने के समय बुआई के 55-60 दिन बाद किसान भाई करें | और तीसरी और आखिरी सिंचाई बुवाई के 80 से 90 दिन बाद करनी चाहिए |
चने की खेती से उपज औसतन –
असिंचित क्षेत्र में –15-20 कुन्तल प्रति हेक्टेयर
सिंचित क्षेत्र में – 25-30 कुन्तल प्रति हेक्टेयर
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