Arhar ki kheti

वानस्पतिक नाम – केजेनस कजान

कुल – लेग्यूमिनेसी

चना के बाद अरहर की खेती (Arhar Ki Kheti) में भारत की दूसरी मुख्य दाल है। जिसकी खेती सबसे ज्यादा क्षेत्रफल पर भारत में की जाती है। अरहर में गुणसूत्रों की संख्या 22 होती है। अरहर की भारत में खेती की जाने वाली मुख्य दो प्रजातियां हैं। जिनमें से पहली Cajanus Indicus var. bicolor है। इसके अंदर जो देर से पकने वाली जातियां होती हैं वह आती है। और दूसरी जाति Cajanus indicus var. flavus है इसके अंदर जल्दी पकने वाली जातियां आती हैं। अरहर का उद्भभ स्थान अफ्रीका माना जाता है।

अरहर की खेती (Arhar Ki Kheti) के लिए उन्नतशील किस्मे

  1. प्रभात
  2. पंत – A-3
  3. पूसा अगेती
  4. पारस
  5. मुक्ता
  6. मानक
  7. सागर
  8. लक्ष्मी
  9. बसंत
  10. बहार
  11. UPAS-120, ICPL-87, ICPL-84031, AL-15
  12. पूसा-74, पूसा-84, पूसा-33, पूसा-55,
  13. ICPH-8, BR-183

अरहर की खेती (Arhar Ki Kheti) के लिए मृदा

अरहर की खेती (Arhar Ki Kheti) करते समय हमें उसके लिए मृदा का खास ख्याल रखना होता है। उस मृदा में कोई किसी प्रकार के पोषक तत्व की कमी नहीं होनी चाहिए।  और अरहर की खेती (Arhar Ki Kheti) के लिए बलुई दोमट मृदा और दोमट मृदा सबसे अच्छी मानी जाती है। मृदा का पीएच उदासीन होना चाहिए। अगर उस जगह जहां पर आप इसकी बुवाई करना चाह रहे हैं खेती करना चाह रहे हैं वहां पर बरसात 75 से लेकर 100 सेंटीमीटर तक होती है। तो यह अरहर की फसल के लिए काफी अच्छी मानी जाती है।

अगर अरहर के पकते समय उस स्थान का तापमान 90 डिग्री फॉरेनहाइट तक है तो यह काफी अच्छा होता है। और फसल से अच्छी उपज प्राप्त होती है।

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अरहर की फसल की बुवाई और उर्वरक, खाद

अरहर की फसल की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय मई-जून का प्रारंभिक सप्ताह माना जाता है। इस समय बरसात प्रारंभ होती है, और हम अपने खेत में  फसल की बुवाई शुरू कर सकते हैं। अरहर की फसल की बुवाई करते समय में दूरी 60 से लेकर 30 सेंटीमीटर तक रखते हैं। और हमें एक हेक्टेयर की बुआई करने के लिए 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीच की आवश्यकता होती है। अरहर की फसल में उर्वरक की बहुत अधिक महत्वपूर्ण प्रभाव होता है।

यदि हमें अपनी फसल को कीट और रोगों से बचाना है। तो फसल में उर्वरक और रसायनों का सही मात्रा में छिड़काव करना होगा। इससे हमारी फसल में कीट नहीं लगेंगे और रोगों से बची रहेगी। जिससे किसान को उसकी इच्छा अनुसार उपज प्राप्त होती है। यदि खड़ी फसल में किसी प्रकार का कोई रोग लग जाता है तो उसके प्रभाव से पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। दाना बेकार हो जाता है। इसलिए अरहर की फसल में 20 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 से 100 किलोग्राम फास्फोरस, 40 से 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डालते हैं।

अरहर की फसल (Arhar Ki Fasal )से उपज

खेती से हमें दाना 15 से 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर और लकड़ी 50 से 70 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से प्राप्त होती है। जब हमारी फसल में किसी प्रकार का रोग या कीटों का प्रभाव ना हो तो। अरहर की फसल में फसल में 22% प्रोटीन पाया जाता है।

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